सेहत की खातिर 40 साल में 80,000 किलोमीटर टहले बापू
मोहनदास करमचंद गांधी
जन्मस्थान: पोरबंदर, गुजरात
जन्मतिथि: 02 अक्टूबर 1869
मृत्युतिथि: 30 जनवरी 1948
महात्मा गांधी पर्यावरणविद, अनुभवी अर्थशास्त्री और एक प्रयोगशील वैज्ञानिक भी थे। खासकर स्वास्थ्य की दृष्टि से उन्होंने तमाम प्रयोग किए और उन्हें अपने जीवन में उतारा। उन्होंने स्वास्थ्य पर हमेशा ज़ोर दिया। उन्होंने कहा था, ‘वास्तव में स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी पूंजी होती है, न कि सोना या चांदी। उपवास और पैदल चलने को वह स्वास्थ्य का अचूक मंत्र मानते थे। बुखार, दस्त, तनाव और अन्य कई रोगों में उपवास और टहलने को उन्होंने दवा की तरह प्रयोग किया। वह इतना पैदल चले कि उसका पूरा हिसाब किसी को भी अचरज में डाल दे। उन्होंने तकरीबन 40 साल में 80,000 किमी पैदल चल कर खुद को स्वस्थ रखा।
व्यायाम भोजन की तरह जरूरी
गांधी जी प्रतिदिन शाम 5:30 बजे आठ मील पैदल टहलते थे। रात में सोने से पहले 30-45 मिनट टहला करते थे। उनके उत्तम स्वास्थ्य का सर्वाधिक श्रेय उनके शाकाहार और खुली हवा में व्यायाम को जाता है। वर्ष 1913 में उन्होंने कहा था कि दिमाग के साथ ही साथ शरीर की हड्डियों और मांसपेशियों के विकास व मरम्मत के लिए भी भोजन की आवश्यकता होती है, इसलिए शरीर और दिमाग दोनों के लिए ही व्यायाम जरूरी है। गांधी जी हर दिन नियमित रूप से 18 किलोमीटर तक टहलते थे और ऐसा उन्होंने लगभग 40 वर्षों तक किया। वर्ष 1913 से 1948 के उनके अभियान के दौरान वे 79,000 किलोमीटर टहले।
गांधी दर्शन आज भी स्वास्थ्यप्रद
गांधी जी के वक्त कुष्ठरोग, तपेदिक, मलेरिया, प्लेग जैसे संचारी रोग और कुपोषण था। इन बीमारियों के इलाज के लिए संसाधन भी सीमित और अपर्याप्त थे। गांधी जी जिन बातों को व्यवहार में लाए और जिनकी सलाह दी, वे सब उस दौर की समस्याओं के निवारण के लिए उपयुक्त थे। चिकित्सा विज्ञान में हुई प्रगति के साथ, हम चेचक, प्लेग, पोलियो, नवजात शिशुओं को होने वाले टिटेनस और गिनी वर्म जैसी बीमारियों पर विजय प्राप्त हासिल करने में कामयाब हो गए हैं, मगर जीवन-शैली से जुड़े, असंचारी रोगों से मुकाबले के लिए हमें गांधी दर्शन को अपनाना होगा।
गांधी की समग्र स्वास्थ्य की अवधारणा
गांधीजी का इस सिद्धांत में अटूट विश्वास था कि एक स्वस्थ मन शरीर को स्वस्थ रखता है। वे अपने उच्च रक्तचाप का अक्सर जिक्र किया करते और बताते कि यह इसलिए था, क्योंकि वे अपने मन पर काबू नहीं रख पाते थे। वे कहते कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा खाने के कारण अपच से पीड़ित है, तो उसे चूर्ण खाने के बजाय उपवास रखना चाहिए। उपवास न सिर्फ उसे राहत देगा बल्कि उसे भविष्य में अधिक न खाने की याद भी दिलाता रहेगा।
जटिल समस्याओं के सरल समाधान
जब गांधी जी डरबन में थे, उन्होंने साधारण आदतों को अपनाया। बेकर से ब्रेड लेना बंद किया। घर पर गेहूं के आटे से रोटी बनानी शुरू की। वे घर में पिसे गेहूं के आटे का उपयोग करते थे। इसके लिए उन्होंने हाथ से चलने वाली एक चक्की (हैंड मिल) खरीद ली। उनके अनुसार ऐसा करने से सरलता, उत्तम स्वास्थ्य और मितव्ययिता को प्रोत्साहन मिलेगा। गेहूं को पीसना बच्चों के लिए एक बहुत अच्छा व्यायाम भी साबित हुआ था। गांधी जी कहते थे कि व्यक्ति को स्वाद के अनुसार नहीं बल्कि शरीर को ऊर्जा व जीवन देने के लिए भोजन करना चाहिए।
डॉक्टर मुझे माफ करें..
गांधी जी ने कहा था ‘चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े मित्रों से क्षमा याचना के साथ, परंतु मेरे अपने और साथियों के अनुभव से बिना किसी संकोच के मैं कहता हूं कि आपको कब्ज, रक्तहीनता, बुखार, अपच, सिरदर्द, वातरोग, गठिया, तनाव, अवसाद की स्थितियों में उपवास रखना चाहिए।
डॉ रजनीकांत
निदेशक, क्षेत्रीय आयुर्वज्ञिान अनुसन्धान केंद्र, गोरखपुर
(शोधग्रंथ ‘गांधी एंड हेल्थ के अतिथि संपादक)